
प्रगति और परंपरा के बीच की इस लड़ाई में एक बार फिर तकनीक ने जीत हासिल कर ली है। 1 सितंबर 2025 से भारतीय डाक विभाग ने रजिस्टर्ड पोस्ट सेवा को बंद कर दिया है। यह निर्णय निश्चित रूप से डिजिटल इंडिया के अनुरूप है, लेकिन क्या हम भावनाओं और सामाजिक जुड़ाव की कीमत पर सिर्फ तेज गति और कागज रहित प्रक्रियाओं को तरजीह दे रहे हैं?
तकनीकी प्रगति: हाँ, लेकिन किस कीमत पर?
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 वर्षों में रजिस्टर्ड पोस्ट का इस्तेमाल 70% तक घटा है। इसके पीछे मुख्य कारण हैं:
✔ ईमेल और डिजिटल सिग्नेचर का बढ़ता चलन
✔ स्पीड पोस्ट और कूरियर सेवाओं की बेहतर पहुँच
✔ डाक विभाग की लागत में कटौती की जरूरत
लेकिन क्या यह प्रगति ग्रामीण भारत, वरिष्ठ नागरिकों और डिजिटल रूप से वंचित लोगों की जरूरतों को पूरा करती है?
ग्रामीण भारत: डिजिटल डिवाइड और बढ़ेगा?
भारत की 65% आबादी आज भी गाँवों में रहती है, जहाँ:
- इंटरनेट पहुँच अभी भी सीमित है।
- डिजिटल साक्षरता नगण्य है।
- पोस्टमैन ही अभी भी जन्म प्रमाणपत्र, पेंशन और सरकारी योजनाओं तक पहुँच का माध्यम है।
क्या ऐसे में डिजिटल डाक सेवाओं पर पूरी तरह निर्भर होना उचित है?
भावनात्मक पक्ष: चिट्ठियों का जादू खो गया
रजिस्टर्ड पोस्ट सिर्फ एक संचार माध्यम नहीं था, बल्कि यादों, धैर्य और इंतज़ार का प्रतीक था।
- पहली नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर
- दूर बैठे बेटे की पहली चिट्ठी
- माँ के हाथों से लिखे त्योहारों के संदेश
क्या ईमेल और व्हाट्सएप इन भावनाओं की जगह ले सकते हैं?
सरकार को क्या करना चाहिए?
हालांकि तकनीकी उन्नति जरूरी है, लेकिन समावेशी विकास पर भी ध्यान देना होगा:
🔹 ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता अभियान तेज करें
🔹 हाइब्रिड मॉडल अपनाएँ (डिजिटल + पारंपरिक डाक का सह-अस्तित्व)
🔹 वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष प्रशिक्षण शुरू करें
निष्कर्ष: प्रगति हो, पर संवेदनशीलता बची रहे
रजिस्टर्ड पोस्ट का बंद होना एक युग का अंत है। हाँ, तकनीक हमें तेजी देती है, लेकिन क्या हम मानवीय जुड़ाव और सरलता की कीमत चुकाने को तैयार हैं?
“प्रगति तभी सार्थक है, जब वह पुराने को विस्थापित करने की बजाय नए के साथ जोड़ दे।”